कस्तूरबा गांधी छात्रावास चारगांव की छात्राओं को सिर्फ कागजो में करा रही वार्डन भ्रमण?
कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विधालय में तौलिया, साबुन, फिनायल की कागज पर सप्लाई?
ठा.रामकुमार राजपूत
प्रधान संपादक-पंचायत दिशा
छिदंवाडा म.प्र
20/02/2020
छिदंवाडा-केन्र्द सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान को बड़ावा देनें के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना के निरर्देशन में देशभर में ७५० आवासिय स्कूल खोलने का प्रावधान किया हैं। इस योजना का शुभारम्भ 2006-07 में किया गया। इन विद्यालयों में कम से कम ७५% सिटें अनुसूचित जाति व जनजाति, पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक वर्गो की बालिकाओं के लिए आरक्षित होगीं बाकि २५% गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करेने वाले परिवार की बालिकाओं के लिए होंगी। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को सार्थक बनाने के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में अब 12 वीं (इंटर) तक की पढ़ाई होगी।[1] अभी कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय कक्षा 6 से 8 तक ही संचालित हैं।, इन छात्राओं को साबुन, फिनायल के साथ ही बालिकाओं के लिए ब्रश और मंजन की सप्लाई कागज पर हो रही है। कस्तूरबा गांधी छात्रावास के आसपास गंदगी फैली रहती है। पूरे सीजन में बिस्तर की सफाई ही नहीं होती है। इसके चलते जिले के कस्तूरबा गांधी छात्रावास की दशा चिंताजनक बनी हुई है। मगर, अफसर हैं कि उन्हें हकीकत देखने का मौका ही नहीं मिलता है।
जिले में संचालित कस्तूरबा गांधी आवासीय स्कूलों की दशा बेहद चिंताजनक बनी हुई है। तीन साल से एक ही ठेकेदार के द्वारा कमीशन के चक्कर में सप्लाई कि जा रही है। आलम यह है कि तौलिया, साबुन, फिनायल, ब्रश, मंजन की सप्लाई कागज पर की जा रही है। इससे बालिकाओं को सफाई करने का न तो अवसर मिलता है और न ही सामग्री मुहैया कराई जाती है। यह सिर्फ मोहखेड़ के चारगांव स्थित कस्तूरबा गांधी छात्रावास की नहीं है, बल्कि अधिकांश कस्तूरबा गांधी छात्रावास में ऐसा ही हो रहा है।
कस्तूरबा गांधी छात्रावास की हाल यह है कि जहां बालिकाएं रहती हैं, वंहा भी सफाई नहीं रहती है बालिकाओं का बिस्तर तो पूरे सीजन में नहीं साफ किया जाता है। कस्तूरबा स्कूलों में पढने वाली बालिकाओं की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, मगर विभागीय अधिकारियों को हकीकत देखने का मौका नहीं रहता है।
ऊपर से नीचे तक चल रहा है कमीशन का खेल
कस्तूरबा गांधी आवासीय विधालय एंव छात्रावास में राशन से रजाई तक की आपूर्ति में कमीशन का खेल चल रहा है। वार्डेन से लेकर विभागीय अधिकारी तक कमीशन लेकर सारी अव्यवस्थाओं पर पर्दा डाल रहे हैं। ठेकेदार पर मेहरबान यह अधिकारियों को खाना-नाश्ते की जांच करने का मौका ही नहीं मिलता है। जिसके कारण जिले में ऐसी धटना हो चूकी है लेकिन फिर भी अधिकारी सुंध नहीं ले रहे है ।कमीशन के चक्कर में बर्षों से नहीं हटा रहे है वार्डन को
तीन साल से एक ही ठेकेदार को दिया जा रहा है सप्लाई का काम
अधिकारियों को कमीशन देकर खुश करने वाले ठेकेदार पर अफसर मेहरबान हैं। लगातार तीन साल से एक ही ठेकेदार को सप्लाई दी जा रहा है। इससे वह मनमानी करने से नहीं चूकता है।
जिलें के छात्रावासों में धटना धटने के बाद भी
नहीं ले अधिकारी /कर्मचारी सुंध
एक ही कर्मचारी के भरोसे पूरे कस्तूरबा गांधी छात्रावास एंव आवासीय विधालय की निरीक्षण की जिम्मेदारी
निरीक्षण अधिकारी आफ्रिस में बैठकर करती है छात्रावास एंव आवासीय विधालयों का निरीक्षण?
डीपीसी कार्यालय में कमीशन का खेल इन दिनों जोर शोर से चल रहा है हर माह हो रही वार्डन से वसूली
छात्राओं का नहीं होता रूटीन चेकअप सिर्फ कागजों में होता है रुटीन चेकअप?
आश्चर्य की बात तो यह रही कि जिलें में कई धटना होने के बाद भी जिला समन्वयक और बीएसए कस्तूरबा गांधी स्कूल की हकीकत देखने नहीं जाते है। ऑफिस से बैठकर होता है निरीक्षण
मोहखेड़ विकास खंड के चारगांव में कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास स्थित है। इस छात्रावास को शासन ने छात्राओं को गुणवत्तापरक शिक्षा देकर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए स्थापित किया है। यहां बदहाल शिक्षा व्यवस्था और खाने पीने की किल्लत के चलते छात्राओं की संख्या कम है। सिर्फ कागज पर ही छात्राओं का पंजीकरण है, जबकि छात्रावास में अधिकतर छात्राएं कम ही रहती है। चारगांव के कस्तूरबा छात्रावास की बदहाली की हकीकत इस प्रकार है।
छात्रावास वार्डन को न तो छात्राओं के स्वास्थ्य की न चिंता है और न ही उनकी परेशानी की। जिस परिवेश में छात्राएं रहने को मजबूर हैं, इसी परिस्थितियों में लोग अपने कलेजे के टुकड़े को पठन पाठन के लिए भेजने का मजबूर हैं। इस छात्रावास में तो छात्राओं के साथ तालिबानों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। छात्रावास की नाकामी छिपी रहे इसके लिए उन्हे कमरों से बाहर नही निकलने दिया जाता है।
उनकी सुविधाओं पर डाका डालने वाली वार्डन धोरसे सुरक्षा के नाम पर छात्राओं को परिसर तक में नहीं आने देती। जबकि छात्रावास में चौकीदार की भी नियुक्त की गई है। लेकिन वार्डन के तुगलकी फरमान से यहां तो छात्राओं को लगभग बंधक की तरह बनकर रहना पड़ता है। जाहिर है कि छात्राएं बाहर आएंगी तो स्कूल की नाकामी भी आम लोगों तक पहुंचेगी। जिससे कि आवासीय विद्यालय की बदहाली आम लोगों तक न पहुंचे। इतना ही नही छात्राओं से बाहर से भी पूछताछ नहीं करने दिया जाता है।
इसके पीछे बस यही प्रयास है कि कहीं छात्रावास की तार तार हो चुकी व्यवस्था की कलई न खुल जाए। यहां पढने वाली छात्राओं की तबियत खराब होने पर उन्हे उपचार नहीं दिया जाता, बल्कि अभिभावकों को बुलाकर रात के अंधेरे में घर भेजा जाता है। कस्तूरबा छात्रावास की बदहाली सामने आने से बेसिक शिक्षा विभाग की नाक न कट जाए, इसके लिए अफसर भी छात्राओं की सुरक्षा की विवशता बता रहे हैं। साफ है कि अफसर व वार्डन मिलीभगत से छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। विभाग की नाक का सवाह है, इसलिए वार्डन व अफसर नाकामी को छिपाने के लिए हर संभव प्रयत्न कर रहे हैं।
शाम होते ही स्कूल छोड़ देती हैं वार्डन
। दिन में छात्राओं की सुरक्षा की आड़ विद्यालय की नाकामी छिपाने वाली वार्डन धोरसे शाम होते ही स्कूल छोड़ देती है। आसपास के दुकानदारों ने बताया कि शाम को पांच बजे तक वार्डन चली जाती हैं और अगले दिन नौ बजे तक वह वापस लौट आती हैं। बताया जाता है कि शहर में उनका कही आवास है और इसी इलाके में रिश्तेदारी है। साफ है कि नाकामी छिपाने के लिए जितनी चिंता वार्डन को दिन में रहती है, शाम। होते होते उन्हीे छात्राओं को भगवान भरोसे छोड़ वह नदारद हो जाती हैं।
और आपने निज निवास चली जाती है ।