कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास बदइंतजामी का शिकार छात्राएं
कस्तूरबा गांधी छात्रावास देलाखारी मैं नहीं मिल रही है छात्राओं को सुविधाएं
इस पहले भी जनजाति कार्यविभाग के कान्या आश्रम में अधीक्षिका के पद पर रह चुकी है अधीक्षिका
राजनीतिक संरक्षण के चलते बर्षो से जमी है अधीक्षिका के पद पर
कइयों बार शिकायत हो चुकी है अधीक्षिका कि उसके बाद भी नहीं हटाई जा रही हैं अधीक्षिका यहां पढ़ने वाली छात्राएं के पालक ने शिकायत भी कर चूके है शिकायत
छिदंवाडा डीपीसी का खूला संरक्षण है
कस्तूरबा गांधी छात्रावास का कभी नहीं होता है निरीक्षण इन छात्रावासों की देख रेख का अधिकार जिला शिक्षा केन्द्र के पास रहता है ।लेकिन इनकी देखरेख करने वाले अधिकारी एंव जिला शिक्षा अधिकारी को मासिक चढवा मिलता है इसलिए इनकी जाँच नहीं होती है ।और कस्तूरबा गांधी छात्रावासों की जाँच ऑफिस में बैठकर हो जाती है जांच ,?
आज जिलें में संचालित हो रहे कस्तूरबा गांधी छात्रावास में भाजपा एंव आर एस एस से संबंध रखने बाले के ही परिवार के शिक्षिकाओं का है कस्तूरबा गांधी छात्रावास में कब्जा
छिदंवाडा-आदिवासियों के कल्याण और उत्थान के कार्यक्रमों में सरकारी अमले की कितनी ज़्यादा रुचि है, इसका प्रमाण छिदंवाडा ज़िला में संचालित हो रहे कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास में देखने को मिल जाता है. जिलें में सबसे ज्यादा कस्तूरबा गांधी छात्रावास संचालित हो रहे है । लेकिन इन छात्रावास में दंबग परिवार की शिक्षिकाओं का है । जिसके कारण कभी नहीं होता इनका जांच इन छात्रावासों में रहने वाली छात्रों का बुरा हाल जिसका उदाहरण चारगांव ,देलाखारी, , दमुआ में देखने को मिल जायेगा यहां पदस्य अधीक्षक सप्ताह में एक दो दिन ही आती जाती है ।
।बच्चियां छात्रावास में बेज़ुबान जानवरों की तरह रहती हैं, इन्हें बोलने का मौका नहीं दिया जाता है।क्योंकि सरकार का संकल्प है कि हर आदिवासी बालक-बालिका को शिक्षा, छात्रवृत्ति और छात्रावास की सुविधा दी जाए।
राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत संचालित इन छात्रावासों एवं आदिवासी विद्यालयों की स्थिति और उनके खर्च की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की आवश्यकता है. उससे पता चल जाएगा कि शासन आदिवासियों के कल्याण के लिए जो पैसा देता है, उसका कितना अंश वास्तव में हितग्राहियों तक पहुंच पाता है और बाकी किनकी जेब या तिज़ोरी में चला जाता है.
असल में सरकारी अमला किन्हीं नेक इरादों से इन छात्राओं को छात्रावास में रहने के लिए मजबूर नहीं कर रहा है, स्वार्थ सरकारी अमले का है. अधिक से अधिक छात्राओं की उपस्थिति बताकर उन्हें मिलने वाले भोजन, यूनीफॉर्म, पठन-पाठन सामग्री, मासिक छात्रवृत्ति आदि सुविधाओं के लिए शासन से प्रतिमाह भरपूर पैसा वसूला जाता है. लेकिन वह पैसा छात्राओं तक कितना पहुंचता है, यह जांच का विषय है. छात्रावास में रहने वाली छात्राओं का कहना है कि इस छात्रावास में कोई सुविधा नहीं है. शौचालय भी गंदे रहते है, , क्योंकि छात्रावास में पानी का पर्याप्त इंतजाम भी नहीं रहता है
सच्चाई यह है कि छात्रावास की कोई भवन नहीं है प्राथमिक शाला में संचालित हो रहा है स्कूल भवन के दो कमरों में ही छात्रावास को स्थानांतरित कर दिया गया. यहां पर सौ छात्राएं रखी गई हैं. प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी है और इसीलिए सरकार कब यहा भवन बनाती है लेकिन अभी भी पुराने दो कमरे वाले छात्रावास में ही छात्राएं रह रही हैं.
छात्रावास में तमाम तरह की अव्यवस्था और असुविधा है. सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारियों को इस बारे में जानकारी है, वह भी मोटी रकम लेकर शांति और उचित कार्यवाही करने का आश्वासन देने के अलावा ज़्यादा कुछ नहीं कर सके. यह छात्रावास इस क्षेत्र में आदिवासी जनजाति की बालिकाओं को शिक्षित करने के कार्यक्रम के तहत बनाया गया है, लेकिन न तो यहां शिक्षा की व्यवस्था है, न रहने की जगह और न ही जीवन के लिए ज़रूरी सुविधाएं. राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत संचालित इन छात्रावासों एवं आदिवासी विद्यालयों की स्थिति और उनके खर्च की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की आवश्यकता है. उससे पता चल जाएगा कि शासन आदिवासियों के कल्याण के लिए जो पैसा देता है, उसका कितना अंश वास्तव में हितग्राहियों तक पहुंच पाता है और बाकी किनकी जेब या तिज़ोरी में चला जाता है.
आदिवासियों के नाम पर घपले और घोटाले
मध्य प्रदेश के अधिकांश आदिवासी छात्रावासों एवं आश्रम-शालाओं में छात्रवृत्ति के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटाला उजागर हुआ है. छात्रावासों में वास्तविक छात्रों की संख्या कम होने पर भी सरकारी अमला संख्या ज़्यादा बताता है और स्कूलों में प्रवेश भी ज़्यादा छात्रों का बताया जाता है. इस प्रकार संख्या के आधार पर छात्रों के नाम से छात्रवृत्ति की रकम शासन से मंजूर करा ली जाती है और नियमित रूप से हर माह निकाली जाती है. लेकिन, वास्तविक छात्रों को छात्रवृत्ति भुगतान के बाद जो पैसा बचता है, वह ऊपर से नीचे तक बंट जाता है.
छिदंवाड ज़िलों के छात्रावासों में बड़े पैमाने पर अनियमितता पाई गई है. एक मोटे अनुमान के अनुसार, हर माह शासन को छात्रवृत्ति मद में लाखों रुपये का चूना लगाया जाता है. छात्रों के भोजन, बिस्तर और अन्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च में भी बड़ी हेराफेरी होती है. काग़ज पर नए कपड़े, कंबल, गद्दे और दरी खरीदना बताया जाता है, लेकिन छात्रों को फटे-पुराने कपड़े ही दिए जाते हैं. भोजन की क्वालिटी भी अच्छी नहीं होती.
प्रधानसंपादक-
ठा.रामकुमार राजपूत