अच्छी शिक्षा को तरस रहे आदिवासी ब्लॉक में संचालित शालाओं के बच्चे आदिवासियों के लिए आने वाली योजनाओं को दीमक की तरह चाट रहे जिले में बैठे अधिकारी

अच्छी शिक्षा को तरस रहे आदिवासी ब्लॉक में संचालित शालाओं के बच्चे


आदिवासियों के लिए आने वाली योजनाओं को दीमक की तरह चाट रहे जिले में बैठे अधिकारी


सहायक आयुक्त ने  कान्या विधालय बिछुआ की प्राचार्य श्री मति सुषमा जैन को सौंपा अतिरिक्त प्रभार कैसे होगा कार्य
 परिणामों पर लगा प्रश्न चिन्ह
जिले में संचालित  शिक्षा विभाग के अंतर्गत शालाओं का परिणाम  विगत कुछ वर्षों से गिरता जा रहा है। जिसको लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारी एवं विभाग के वरिष्ठ शिक्षकों के माध्यम से नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी परिणामों का ग्राफ नीचे आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता । प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले में संचालित उत्कृष्ट विद्यालय सहित अनेक शालायें ऐसी हैं जहां से परिणामों में वृद्धि किये जानें की संभावना बनी रहती है। लेकिन इस  बार आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त एन एस बरकड़े के द्वारा इन शालाओं के प्राचार्य के पाँच पाँच जगह का कार्य सौप कर रखा है ।जिसके चलते फिर इन शालाओं का परिणाम में गिरवट आने की पूरी संभावना बनी हुई है 
 उल्लेखनीय है कि पंचायतों के अंतर्गत आने आने वाले इन गांव में शिक्षा की अलख जगाने का दायित्व सौंपा गया है। गौर करने वाली बात भी है ।कि शिक्षा विभाग की तुलना में आदिवासी विभाग के अंतर्गत शासन द्वारा विशेष बजट इस विभाग को मिलता है इसके बावजूद भी आदिवासी विभाग द्वारा संचालित शालाओं का परिणाम संतोषजनक नहीं आता है ।और आयें दिनों इन शालाओं की शिकायत  प्रशासन के पास आती रहती है इसके बाद भी सहायक आयुक्त एन.एस.बरकडे द्वारा इन शालाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। और नेतागिरी कर एक प्राचार्य ने चार चार संस्थाओं का दायित्व ले कर रखा है। जैसे कि कान्या विधालय बिछुआ की प्राचार्य श्रीमति सुषमा जैन  को  विकासखंड बिछुआ के अंतर्गत आने वाली, एकलव्य आवासीय विधालय सिंगारदीप ,कान्या परिसर बिछुआ , एंव  अनेक आदिवासी शालाओं का अतिरिक्त प्रभार सौप कर रखा है ।इसके अतिरिक्त अनेक ऐसी शालाये है ।जो जिला एंव प्रदेश स्थर पर  परिणाम तो देना चाहती है। लेकिन एसी एन.एस.बरकडे से सांठगांठ कर  लाभ कमाने के उद्देश्य प्राचार्य श्रीमती सुषमा जैन ने अतिरिक्त प्रभार ले कर रखा है ।जिसके कारग इन शालाओं में  में पढ़ने वाले आदिवासी बच्चे का भविष्य संकट में क्योंकि यहां पर प्राचार्य ध्यान नहीं देती है ।प्राचार्य  इन शालाओं में सप्ताह मैं एक-दो दिन कभी पहुंच गई तो पहुंचती है नहीं तो महीने में ही आना जाना होता है ।  कारण है प्राचार्य का प्रति दिन छिदंवाडा से आना  फिर आप समझ सकते हैं इन शालाओं में पढ़ाई कैसी होती होगी।कैसे इन आदिवासियों के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी। जब तक जिलें में ऐसे अधिकारी/कर्मचारी रहेंगे तो कैसे होगा आदिवासियों का विकास जो आदिवासियों के लिए आने वाली योजना को दीमक की तरह चाट रहे हैं